कोरे कोरे नसीब पे लिख दूं कुछ अजीब
रूठे पल हस देंगे, सूझी है नय़ी तरकीब ..
लगता है उलझा हूं थोडा, सुलझा कुछ हू
इतना यकीं है, आ गया हू खुद के करीब
दिल के अंदाज बदलते है मौसम की तरह
वही उसका एक दोस्त है, वही एक रकीब
छुपते छिपाते कब तर फ़िरते रहेंगे हम
अब साथ हसता गाता चलेगा मेरा नसीब
जब जब कुछ मिले, उतना ही देते चलो
कल जरूर कहोगे, सच कहता था वो गरीब
I am as elusive, as you allow me to be.. I am as opaque, as you read me more.. I am as possesive, as you claim on me.. I am as fluent, as you ease me.. I am as impossible, as memories try to erase me ..
Thursday, February 26, 2009
Wednesday, February 18, 2009
आयुष्याचं कोडं
आयुष्याचं कोडं आहे
कोड्यात आहेत
विचारांची एककं ..
मग समोर येतात
विचारांचे प्रकार
प्रश्नांचे आकार
ओळखिचे नकार
अलिप्त रुकार ..
निवडायचं असतं
शांत एक उत्तर..
मग विचार सोडून
त्यालाच आयुष्य
बनवायचं असतं ..
कोड्यात आहेत
विचारांची एककं ..
मग समोर येतात
विचारांचे प्रकार
प्रश्नांचे आकार
ओळखिचे नकार
अलिप्त रुकार ..
निवडायचं असतं
शांत एक उत्तर..
मग विचार सोडून
त्यालाच आयुष्य
बनवायचं असतं ..
Wednesday, February 11, 2009
untitled...
कभी दुनिया मे सब अच्छा लगता है
जमीं आसमां में तू ही तू छाया रहता है
सुना था ख्वाब दिल से देखो, पुरे होंगे
वो ख्वाव, कितने दिनोंसे ये ही सुनता है
घर मे हसता खेलता फ़िरता है कोई
दिखने में मेरा ही हमशक्ल दिखता है
दिवाना बादल बरसता है, तरसता है
तेरी कहानी बूंदो की जबानी कहता है
मुझमे घुल गया है एक बावरा आसमां
हर गली कूचे में तुझे ढुंढता फ़िरता है
ये लफ़्ज है, या फ़िर तेरी यादों की परछाई
जैसे साहिल की रेत पे तुझे कॊई लिखता है
जमीं आसमां में तू ही तू छाया रहता है
सुना था ख्वाब दिल से देखो, पुरे होंगे
वो ख्वाव, कितने दिनोंसे ये ही सुनता है
घर मे हसता खेलता फ़िरता है कोई
दिखने में मेरा ही हमशक्ल दिखता है
दिवाना बादल बरसता है, तरसता है
तेरी कहानी बूंदो की जबानी कहता है
मुझमे घुल गया है एक बावरा आसमां
हर गली कूचे में तुझे ढुंढता फ़िरता है
ये लफ़्ज है, या फ़िर तेरी यादों की परछाई
जैसे साहिल की रेत पे तुझे कॊई लिखता है
Thursday, February 5, 2009
ओलेते काव्य
सांगु तुला?
गुज मनाचं
तुझ्या माझ्या
एकपणाचं
गोऱ्या स्वप्नांची
निळी ओढणी
तुझ्या रुपाने
अवाक पापणी
तुझ्या भेटीचे
मृद्गंधी क्षण
मनी जपलेले
सोनसळी कण
ओलेते काव्य
झरतं प्रेम
शब्द संपुनही
उरतं प्रेम
गुज मनाचं
तुझ्या माझ्या
एकपणाचं
गोऱ्या स्वप्नांची
निळी ओढणी
तुझ्या रुपाने
अवाक पापणी
तुझ्या भेटीचे
मृद्गंधी क्षण
मनी जपलेले
सोनसळी कण
ओलेते काव्य
झरतं प्रेम
शब्द संपुनही
उरतं प्रेम
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