Sunday, June 29, 2008

तुझा हट्ट

तू मला मा्गावं काहीतरी
मी जिवाचं मग रान करावं
हौस पुरी झाली एकदा की
तू खुदकन गोडसं हसावं

परत तुझा नवीन हट्ट
मी तो अलगद पुरवण्याचा
स्मितभर हसतो अता मी
उगा प्रयत्न करतो नभांतून
शेवटचा टाटा करण्याचा...

Saturday, June 28, 2008

इक रिश्ता

कुछ ऐसा इक रिश्ता उनसे जोडना चाहता हूं
हल्की दरार भी न हो , ऎसा जुडना चाहता हूं

ओंस की बूंदे आंखों मे छाई है थोडी थोडी
कुछ नमी उन सांसों मे भी पिरोना चाहता हूं

उन्हें भुलाने की बहुत कोशिश की इन दिनों
कैसे वो समझ जाते है मै उन्हे बुलाना चाहता हूं

मेरे समंदर को किनारों की कमी न थी कभी
उस एक को ही क्यूं बार बार टकराना चाहता हूं

आसमां मे उडने का शौक मुझे बहुत ज्यादा है
मेरी जमीं के आशिकों को क्यूं छोडना चाहता हूं

उन्हें कहने की कुछ हिम्मत नही होती अब भी
उनके हसने में सांवरे अल्फ़ाज ढूंढना चाहता हूं

Wednesday, June 25, 2008

सुन ले ऎ जिंदगी

सुन ले ऎ जिंदगी, तू मुझे यूंही डरा नही सकती
आखिर तक खेलूंगा मै, ऎसे ही हरा नही सकती

ख्वाब ही ख्वाब चुने थे मैने इस पूरी राह भर
पूरे किए बिना तू मुझे मुझसे चुरा नही सकती

तुझसे मिठेसे मरासिम कभी न जुड सके
तिखी यारी निभाके तू यूं मुस्कुरा नही सकती

कहने दे मुझे जो भी दिल मे छुपा रखा है
बिन कुछ बोले तू मुझे झूठा ठहरा नही सकती

लिखता रहूंगा आखरी सांस रहेगी जब तक
घुटके जीने का जुर्म तू मुझसे करा नही सकती

Sunday, June 22, 2008

In response to deepa's poem ...

इस घर को सजाऊं किस किस तरह
अपनासा लगने लगे, फ़िर जा सको तो जाइयेगा

हवाओं का रुख यूं ना मोड सकोगे तुम
मेरे साथ जरा बहो, फ़िर जा सको तो जाइयेगा

साहिल पे लहरे भी है , ढलता सूरज भी
मुझमे पैर भिगो लो, फ़िर जा सको तो जाइयेगा

तुम्हारी मेरी डगर शायद अलग अलग हो
किसी मोड पे मिलेंगे, फ़िर जा सको तो जाइयेगा

अल्फ़ाजों के खेल मुझको शायद नही आते
आखों से रोक लू, फ़िर जा सको तो जाइयेगा

Friday, June 20, 2008

मंद जळती लेखणी

स्वप्नं, स्वप्नं राहिलेली बरी
नाहीतर डोळ्यांना बोचतात
पापण्यातच दडलेली बरी
नाहीतर आसवांतून तरळतात

आकाशात उडू नये म्हणे उंच
कधी एकदम पडायला होतं
हसत रहावं म्हणे खुप खुप
कधी एकदम रडायला होतं

प्रेम करून पहावं नक्कीच
ते जाताना किंमत कळते
एकटं राहून पहावं नक्कीच
जीवलगांची किंमत कळते

कितीही काहीही वाटलं तरी
फ़ार असं लिहू नये म्हणतात
मंद मंद जळत रहाते लेखणी
लोकं वा वा करून सटकतात

Thursday, June 19, 2008

कोहरा

जिंदगी मे दांव पर लगे, रोज नये मोहरे हैं
कभी खुला आसमां, कभी हर तरफ़ कोहरें हैं

खुशी मिली थी , उसके साथ चल न सका
इतनी पास थी , हाथ पकड चल न सका
अब बस गुमनाम साहिल पे टकराती लहरें हैं
..

आईना देखकर पूछा , क्या यहीं हूं मै
बस यही सोचता रहा , क्या सही हूं मै
आनेवाले सभी लम्होंके, अजनबी से चेहरे हैं
..

थोडा सयाना, थोडा दिवाना , बच्चे सा दिल
थोडा बेगाना, थोडा झूठा, थोडा सच्चे सा दिल
कोई गलती ना करे , इसलिए लगाए थोडे पहरें है
...

Tuesday, June 17, 2008

कुछ घंटे ...

कुछ घंटे हुए है तुम्हारी आवाज सुने
क्यूं लगता है सदियां गुजर गई
जीने के लिए आज राशन न मिला
नब्ज जाने कहां आके ठहर गई

यूं लगता है तुम साथ साथ ही हो
रुठे हो , अभी हसोगे , थोडी बात भी हो
पर .. पर..
रतजगे से ख्वाब झटक दिए सब
हंसती हूई यादोंसे आंख भर गई
कुछ घंटे ...

इतना दूर न रहो के कुछ बात न हो
यहां तुम न रहो तो ये कायनात न हो
पर .. पर..
सुबह सुबह शायद तुम मिलो
ख्वाब पलकों मे ये रात भर गई
कुछ घंटे ...

Monday, June 9, 2008

खुबसुरत चोरी

नकाब उठाईये, जरा पर्दे गिराईये
हसरत है जो आंखोमे, जुबां पे लाईये ..

न होगा हमसे वफ़ा का झूठा सलाम
लौटके जब न हो जाना , तब ही आईये ...

तमन्ना है तुम्हे छुपा के रखु कही
खुद ही आकर इन पलकोंको सजाईये...

दुनियाकी क्यू बिनवजह फ़िक्र है तुम्हे
ये खुबसुरत चोरी सामने से कर जाईये ..

--- अभिजित ...

Wednesday, June 4, 2008

आज कल ख्वाब भी नये है

आज कल ख्वाब भी नये है
किसी ने अभी अभी बोये है
क्यू जगा रहे हो हमे यारों
कुछ चंद पल ही तो सोये है

पलकोंके आसपास कहीं
एक जगह वो खास कहीं
वहीं छुपे कुछ हमसाये है....
आज कल...

आकाश जितना ऊंचा ख्वाब
जमींसे है उम्दा सिंचा ख्वाब
खुशी से बादल भी रोये है...
आज कल...

धुंधला सा कोहरा हल्का सा
बूंद बूंद सपना छल्का सा
रोज इसी मोड पे खोए है...
आज कल...


--- अभिजित गलगलीकर ..... ४-६-०८ .....