ख्वाबों की सब्जी, तमन्नाओं की चटनी
सच्चाई का तडका लगा, तब बात बनी
ये पल मे खुश रहो, आनेवालेका क्या पता
गम को लाथ मारो, जानेवालेकी क्या खता
रोते रोते फ़ट से हस दिया ,तब बात बनी
इस दिल ने बडा तरसाया, अब क्या कहूं
रुलाया हसाया बहकाया , सब क्या कहूं
खुल्ला आजाद छोड दिया, तब बात बनी
आज कल यूंही चांद का ख्वाब देखता हूं
वो तो सिर्फ़ हसता है, मै भी हस देता हूं
अब सब, रब पे छोड दिया, तब बात बनी
--- अभिजित गलगलीकर .... ११ - ५ - २००८
No comments:
Post a Comment