शाम मे तेरे साये लहराते है
धूप का नजारा दिखा जाते है
अब मुझमे न ढूंढ खुदको
रुक तेरा पता पूछ आते है
शहरमे अपनोंकी कहां कमी
यूंही खुदको अकेला पाते है
रातभर आंच है आग की
करवटों मे उसे छुपाते है
कोई खास मरासिम न सही
ऐसेही तुझपे हक जताते है
ख्वाबों की स्याही मुफ़्त मिली
चलो 'अभि' से लिखवाते है ..
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