Tuesday, April 8, 2008

धुंधलीसी ख्वाहिश ...

चाँद जलता रहा, हम जागते रहे
धुंधलीसी ख्वाहिश को निहारते रहे

जब से तुम्हे पलकोंमे छुपाया है
आँखो मे कभी ख्वाब, कभी धुआँ है
सांवलेसे आईनेमे खुद को ढुंढते रहे
...

जब प्यार मिला उसे ना समझ सके
एक खोटे चाँदसा भी ना सज सके
फ़टी जेब मे ख्वाबों के सिक्के टटोलते रहे
...

धुआँ धुआँ सा चारो तरफ़
नम नम सा हर एक हर्फ़
जाने क्यू ऐसेही गम सहलाते रहे
...

चाँद जलता रहा, हम भी जलते गये
धुंधलीसी उस ख्वाहिश मे धुंधलाते गये

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