इन सुनसान गलियों मे न जाने क्या अपनासा है
शायद इन मे छुपा कोई धुंधला एक सपनासा है
सांवलीसी मुरत कॊई,आस पास कही
सायें सी लिपटी,सीने के आस पास कही
ये ख्वाब इस शाम मे भी,एक आहना सा है
(आहना -> सुरज की पहली किरणें)
एक वो रंगीन तितली कही उडती दिख गई
छुईमुई यादें , छन से हसकर झलक गई
ये सन्नाटा भी अब लगे, एक हसीं तरानासा है
हर वक्त क्यू उनकी याद गुनगुनाती रहती है
अभी से फ़िर मिलनेकी झंकार सुनाती रहती है
बडा बेसब्र ये सफ़र भी,बेगाना,इक दिवानासा है
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