Saturday, April 10, 2010

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कुछ आस-पास है, कुछ सोचा हुआ कहीं
कुछ छिनके लाया हूं, कुछ फ़सा हुआ कहीं

साहिल पे कुछ निशान बनते है बिखरते है
मेरा भी निशान है, कुछ बिखरा हुआ कही

आसमां से लेके जमीं तक निला है जहां
जमीं पे क्यूं काला, कुछ उजला हुआ कहीं

दिन गुजरे है, मगर दिल मे तारीख वही हैं
एक ही पन्ना उंगलियों मे अटका हुआ कहीं

सांसे अब लौटके आ रही है थोडी थोडी
किसी ने कल देख लिया उडता हुआ कही