Sunday, December 28, 2008

नम शबनम

एक पल नम होगा, अगले पल शबनम
एक लफ़्ज गम होगा, लौटेगी हंसी मद्धम

कभी खरोंच लगेगी,कभी प्यार का मरहम
बाहों मे सिमट जाएगा आंसूओ का वहम

तुझसे ही जिंदगी है,सांसों मे है तू हरदम
सच है, झूठ है, ख्याल है, विश्वास है
तू है हर पल ऋतू बदलता हुआ मौसम..

Saturday, December 27, 2008

शब्दांपारची तू ...

सतत सहज मनात तू
आठवांच्या रानात तू
स्वतःहून जास्त जपलेल्या
पिंपळपानात तू

खोडकर आभास तू
लहरी मनाची आरास तू
उगाचच वाटणारा
आत्मविश्चास तू

स्वप्नांची पालवी तू
आकाशाची दिशा नवी तू
अवखळ निरागस
पण मनस्वी तू

शब्दा शब्दात तू
अर्था अर्थात तू
मी माझा न उरलो
मम स्वार्थातही तू

Friday, December 19, 2008

रफ़ू-ए-दिल

कितना भी करूं दिल पे काबू नही होता
खुद के सिवा किसीसे गुफ़्तगू नही होता

अनसुने अनदेखे जख्म काफ़ी है छुपे हुए
आखों से बहनेवाला क्या लहू नही होता?

किस किस कोने मे सिलवाउं दिल को
वो दर्जी तो कहता है अब रफ़ू नही होता

जलती बुझती आंखों मे है ख्वाबों के दिये
रोशन करे उन्हे,ऐसा कॊई जादू नही होता

मौत से ख्वामख्वाह डरते रहते है सब लोग
अकेली जिंदगी से बडा कोई उदू नही होता

(उदू - enemy )

न जाने कैसे गम ढलते जाते है शब्दोंमे
मै भी कहां शायर होता गर तू नही होता

Saturday, December 6, 2008

तू जो यहां नही..

कलम को चाहिये दर्द की स्याही ..
अब न कोई कमी, तू जो यहां नही..

यादों की पुरवाई लौट आयी थी सुबह
खुशबू भी बदल गयी है तेरी ही तरह
साहिल पे टहलता मै ही मेरा हमराही
कलम को ....

हसके बात करता है मुझसे मेरा माझी
बोला अब कैसी दुश्मनी क्या नाराजी ..
अटूट साथ है, चलती रहेगी आवाजाही
कलम को ....

समंदर भी मेरे मन जैसा फ़ैला हुआ
हर किनारा है मरहम से सिला हुआ
सपनो की रेत धोने लहरें आई मनचाही...

कलम को चाहिये दर्द की स्याही ..
अब न कोई कमी, तू जो यहां नही..