Monday, May 4, 2009

ये रात आई , ये शाम ढली

ये रात आई , ये शाम ढली
कुछ ख्वाब जगे, कुछ यादें मिली

डायरी मे लिखे हुए बेतुके सपनों मे
थोडा शहद है, थोडा नमक पन्नों मे
मुझसे अन्जान मेरी ही तस्वीर मिली..
कुछ ख्वाब जगे, कुछ यादें मिली..

धीरे धीरे चांद चलता है रात साये मे
छुपता है, दिखता है, मेरे हमसाये मे
उन आंखों में जिंदगी की शबनम मिली..
कुछ ख्वाब जगे, कुछ यादें मिली..

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