Tuesday, May 1, 2012

रुबाई


तिनका तिनका यादें मिली, कतरा कतरा स्याही मिली.
खो गई थी जो हक़ीकत मे, सपनों मे वो रुबाई मिली.

उसका नीला कारवाँ इस अंबर से भी गहरा था
मेरी आखों मे उसका मौसम आज भी सुनहरा था

उसकी और मेरी बुनियाद कुछ अल्फाजों से जुड़ी रही
वो कागज़ पलट चले गये, मेरी कलम वही खड़ी रही

इन नूरानी सपनों से जागे कुछ ही लम्हे बीते है,
वही कुछ पल थे, जो जिंदगी ने हारे है, मैने जीते है...

-- अभिजीत ०१-०५-२०१२

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