Wednesday, July 10, 2013

स्वैर भावानुवाद. - अपने होंठों पर

स्वैर भावानुवाद. 

ओठांवर साज तुझा यावा
आवाज मंजूळसा यावा

तुझ्या मिठीतल्या आसवांना
आकार मोतियाचा यावा

आटले आता अश्रू माझे
कधी तुलाहि हुंदका यावा

काळोख भस्म करेल असा
घरात तप्त निखारा यावा

तुझ्या कुशीत गझल घडताना
अखेरचा श्वास घेता यावा

१६ मात्रा .

-- अभिजित गलगलीकर -
९-७-२०१३

मूळ गझल 

क़तील शिफ़ाई  

अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ 
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ 


कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर 
बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ 

 |

थक गया मैं करते-करते याद तुझको 
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ
 |

छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा 
रोशनी हो, घर जलाना चाहता हूँ 


आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आये 
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ

|| 

No comments: