Monday, November 24, 2008

थोडा खुदसे बात करो

थोडा खुदसे बात करो, दिल खिल जाता है
अकेलापन दोस्त की तरह घुलमिल जाता है

दिल ही दिल मे इतना रोए है अब तक
छलकता आंसू आंखो मे ही सिल जाता है

पता नही कौनसे आसमां की आस है ये
तेरे ही सपनो के कोहरे मे ये दिल जाता है

तुने कोई आशा दिखाई भी तो न थी कभी
जाने क्यूं फ़िर निराशा से मन छिल जाता है

कितनी दफ़ा सोचा है, तुझपे कुछ न लिखू
लब्जों के कतरे कतरे मे तूही मिल जाता है

No comments: