Saturday, December 6, 2008

तू जो यहां नही..

कलम को चाहिये दर्द की स्याही ..
अब न कोई कमी, तू जो यहां नही..

यादों की पुरवाई लौट आयी थी सुबह
खुशबू भी बदल गयी है तेरी ही तरह
साहिल पे टहलता मै ही मेरा हमराही
कलम को ....

हसके बात करता है मुझसे मेरा माझी
बोला अब कैसी दुश्मनी क्या नाराजी ..
अटूट साथ है, चलती रहेगी आवाजाही
कलम को ....

समंदर भी मेरे मन जैसा फ़ैला हुआ
हर किनारा है मरहम से सिला हुआ
सपनो की रेत धोने लहरें आई मनचाही...

कलम को चाहिये दर्द की स्याही ..
अब न कोई कमी, तू जो यहां नही..

No comments: