Thursday, February 21, 2008

आवारगी...

आवारगी, शहर में इस कदर जमी रहें
विरानियाँ छुपके इस दिल में थमी रहें

यूँ ही महफ़िलों का दौर चले,दिन-ब-दिन
कोई फ़िसली आह, इस शोर मे अनसुनी रहें

दाँव-ए-मरासिम पे लगाते फ़िरे इस दिल को
जिंदगी अपने इस अलबेले शौक पे बनी रहें

खुशियों का ,ये दिल तो ,मायका हो जैसे
अपनी अपनी फ़ुरसत से वो आती जाती रहें

इतना गुस्सा न कर जमाने पे , अभिजित
किसी ना किसी से तो, जमाने की बेरुखी रहे

--- अभिजित -- (२०-२-२००८)

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