Saturday, June 28, 2008

इक रिश्ता

कुछ ऐसा इक रिश्ता उनसे जोडना चाहता हूं
हल्की दरार भी न हो , ऎसा जुडना चाहता हूं

ओंस की बूंदे आंखों मे छाई है थोडी थोडी
कुछ नमी उन सांसों मे भी पिरोना चाहता हूं

उन्हें भुलाने की बहुत कोशिश की इन दिनों
कैसे वो समझ जाते है मै उन्हे बुलाना चाहता हूं

मेरे समंदर को किनारों की कमी न थी कभी
उस एक को ही क्यूं बार बार टकराना चाहता हूं

आसमां मे उडने का शौक मुझे बहुत ज्यादा है
मेरी जमीं के आशिकों को क्यूं छोडना चाहता हूं

उन्हें कहने की कुछ हिम्मत नही होती अब भी
उनके हसने में सांवरे अल्फ़ाज ढूंढना चाहता हूं

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